Ad

Ad
Powered by U Times

हरिद्वार: शांतिकुंज में शुद्ध व सात्विकता से परिपूर्ण रहता है माताजी का भोजन प्रसाद, 24 हजार लोग प्रतिदिन करते हैं ग्रहण

करीब २५ हजार लोग नित्य ग्रहण करते हैं निःशुल्क आहार

 चंद्रप्रकाश बहुगुणा, हरिद्वार 

कुंभ नगरी हरिद्वार के कई मंदिर, मठ एवं आश्रमों में भोजन-प्रसाद का नियमित रूप से वितरण होता रहता है। प्रसाद का बड़ा ही महत्त्व है, जब उसे श्रद्धा से ग्रहण किया जाता है, तो यह प्रसाद कई प्रकार के लाभों से लाभान्वित करता है। 

इसका सबसे पहला लाभ तो आहार शुद्धि-सत्त्व शुद्धि के रूप में मिलता है। मानसिक तथा शारीरिक बीमारियों में एक विशिष्ट प्रकार की औषधि का काम भी यह प्रसाद करता है। 


गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में भी प्रसाद वितरण की विशेष व्यवस्था है। प्रसाद अर्थात् जो भगवान् को समर्पित किया गया, जिसका भगवान् को भोग लगा दिया गया। शांतिकुंज में और कोई प्रसाद वगैरह नहीं बँटता, केवल परम वन्दनीया माता भगवती देवी भोजनालय में शुद्ध-सात्विक भोजन वितरित किया जाता है। इस भोजन का सबसे पहले अखण्ड दीपक एवं गायत्री माता मंदिर पर भोग लगाया जाता है, तत्पश्चात् ही भोजनालय में वितरित किया जाता है। 

 यह प्रसाद ‘जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन’ वाली कहावत को चरितार्थ करता हुआ, प्रसाद ग्रहण करने वाले के मन-मस्तिष्क को शुद्ध-सात्विकता से भर देता है। ऐसा शुद्ध, सात्विक मन शीघ्र ही एकाग्र होकर इच्छित कार्य में लग जाता है, तो परिणाम चौंकाने वाले होते हैं। इसलिए इस प्रसाद का यहाँ चलने वाले प्रशिक्षण सत्रों में विशेष महत्त्व है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए यहाँ निवास करने वाले कार्यकर्त्ता और विभिन्न संजीवनी साधना सत्र, युगशिल्पी सत्र, शिविरों सहित आगुंतकों में आने वाले हजारों व्यक्ति बड़ी ही श्रद्धा से भोजन-प्रसाद पाते हैं। 

इस व्यवस्था को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिए शांतिकुंज अधिष्ठात्री के मार्गदर्शन में एक भोजनालय प्रकोष्ठ है, जहाँ करीब पचास से अधिक स्वयंसेवक अपनी समर्पण के साथ सेवाओं के लिए तत्पर रहते हैं। इस आध्यात्मिक सैनिटोरियम में गायत्री परिवार के जनक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने निवास तथा भोजन प्रसाद की व्यवस्था निःशुल्क रखी है, ताकि सामान्य से सामान्य स्तर के व्यक्ति भी यहाँ चलने वाले प्रशिक्षणों का, तीर्थ सेवन का लाभ प्राप्त कर सके।

 उल्लेखनीय है कि जब गायत्री परिवार की नींव रखी गयी थी, तब गायत्री तपोभूमि मथुरा में गायत्री परिवार की अधिष्ठात्री परम वन्दनीया माता जी स्वयं आगन्तुक परिजनों को रोटी (खाना) बनाकर खिलाया करती थीं, आगन्तुक यदि देर रात्रि को पहुँचते, तो भी वे उन्हें खाना खिलाकर ही सोने देती थीं। यह परिपाटी आज भी यहाँ (शांतिकुंज में ) उनकी सुपुत्री संस्था प्रमुख श्रद्धेया शैल दीदी के कुशल मार्गदर्शन में अनवरत रूप से चल रही है। माताजी की जन्मशताब्दी वर्ष २०२६ की तैयारियों के अंतर्गत चलाये जा रहे मां भगवती अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत हरिद्वार के अनेक अस्पतालों, आश्रमों, संस्थानों में भी नियमित रूप से भोजन प्रसाद पहुँचाया जा रहा है। वहीं चारधाम यात्रा में आने वाले हजारों श्रद्धालु भी शांतिकुंज में और शांतिकुंज द्वारा चलाये जा रहे अन्नपूर्णा योजना के तहत निःशुल्क भोजन प्रसाद पाते हैं। 

 विश्व के कई देशों में फैले करोड़ों गायत्री परिवार की विराट् जनमेदिनी में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसे इस स्नेह संजीवनी से लाभान्वित होने का अवसर न मिला हो। हर व्यक्ति की यह अनुभूति रही है कि एक वही ऐसा है, जिसे इतनी देर तक उनके साथ रहने, अपने दुःख दर्द सुनाने का अवसर मिला। देश-विदेश के कई लोग अवसर मिलते ही यह कहते हैं कि माताजी ने मुझे अलग से बुलाकर खाना खिलाया, मेरा साहस-मनोबल बढ़ाया। जिसका परिणाम है कि आज मैं समाज को नई दिशा, नई क्रान्ति करने लायक बन पाया हूँ। इसलिए गायत्री परिवार की अधिष्ठात्री माताजी कहा करती थी कि जो व्यक्ति हमारे यहाँ भोजन कर लेता है, वह निश्चित रूप से समाज हित, परमार्थ परायण पुण्य कार्य सोचने-करने की स्थिति में आ जाता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ