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उत्तराखंड की बेटी का फेमस रेस्टॉरेंट, जहां मिलता है A to Z पहाड़ी व्यंजन

प्रकाश रांगड़, उत्तराखंड

अगर आप पहाड़ी व्यंजनों के शौकीन हैं, तो चले आइए उत्तराखंड (Uttarakhand) की राजधानी देहरादून। जी हां, यदि देहरादून जा रहे हैं या दून (Dehradun) में रहते हैं तो आपको एक बार प्यारी पहाड़न रेस्टॉरेंट जरूर जाना चाहिए। प्यारी पहाड़न (Pyari Pahadan) दून के कारगी चौक पर बंजारावाला रोड के नजदीक खुला है। 50 मी. की दूरी पर दूसरा रेस्टॉरेंट भी है। यहां आपको पहाड़ी उत्पादों से तैयार एक से बढ़कर कई  प्रकार के लजीज व्यंजन परोसे जाएंगे, जिसकी पहाड़वासियों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। यूं तो कई बार पहाड़ी व्यंजनों को पहले भी होटलों और सरकारी वीआईपी कार्यक्रमों व आवासों के मेन्यू में शामिल करने की पहल की जा चुकी है और शायद परोसे भी जा रहे, लेकिन जो दून के कारगी चौक पर प्यारी पहाड़न में परोसा जाता है, उसका कोई शानी नहीं। 

 यहां स्वास्थ्यवर्धक माने जाने वाले पहाड़ी व्यंजनों की भरमार है। हर प्रकार की पहाड़ी डिश कस्टमर्स (Customers) को परोसी जाती है। यहां तक कि भोजन का चटखारा स्वाद लेने के लिए पहाड़ी अंदाज में पीसा गया नमक यानी पिस्यूं लोण भी मिल जाएगा। यकीन मानिए, यहां पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद लेने के बाद बार-बार इसी रेस्टॉरेंट की ओर खींचे चले आएंगे। बशर्ते एक बार जाइए तो सही। इसलिए भी जोर दे रहा हूं कि क्या पता भागदौड़ भरी इस जिदंगी में बंद पैकेट और केमिकलयुक्त पानी और भोजन कंज्यूम (Consume) करके आप लोगों ने अपनी सेहत कमजोर कर ली हो। ऐसे में विशुद्ध हवा, पानी और जैविक खेती करके उगाए पहाड़ी उत्पादों से तैयार भोजन आपकी हेल्थ को बूस्ट करने का काम सकती है। दुनिया भर में हुए वैज्ञानिक रिसर्च पहाड़ी उत्पादों के सेवन को बेहत्तर स्वास्थ्य और मजबूत इम्यून सिस्टम पाने का सर्टिफिकेट दे चुके हैं। और ऐसे में जब आपके शहर या प्रदेश की राजधानी में ये सब चीजें मिल रही है, तो गनीमत समझना चाहिए।

ये पहाड़ी डिश हैं मेन्यू में शामिल, ऑनलाइन भी मंगवा सकते हैं-

लाल चावल, झंगोरे की खीर, कोदे की रोटी, आलू जख्या, छांच, चैंसू, फाणूं, भटवाणी, कंडेली की धबड़ी, गहत के पराठे, आलू की थिचवाणी, काफली साग, झोल, अचार, पिस्यूं लोण आदि।


रेस्टॉरेंट ने उत्तराखंड में मचाई धूम-

जब से देहरादून के कारगी चौक पर पहाड़ी व्यंजन ( Pahadi dishesh) परोसने वाला ये रेस्टॉरेंट खुला है, यहां खाना खाने वालों की भरमार लगी पड़ी है। कस्टमर्स लौट-लौट कर रेस्टॉरेंट का रूख कर रहे हैं। प्यारी पहाड़न धीरे-धीरे प्रदेशभर में ख्याति पा रहा है। रेस्टॉरेंट का नाम राज्य के विभिन्न हिस्सों से दून पहुंचने वाले कस्टमर्स की जुबान पर है। 

बीटेक करने वाली पौड़ी की बेटी है संचालक-

प्यारी पहाड़न रेस्टॉरेंट की संचालक पौड़ी जिले के धुमाकोट ब्लॉक की रहने वाले प्रीति मैंदोलिया (Preeti Maindoliya) है। प्रीति ने पॉलिटेक्निक और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉम्यूनिकेशन से बीटेक किया है। उनके साथ देहरादून के रहने वाले जतिन लूथरा बतौर मैनेजर काम कर रहे हैं।

ऐसे आया पहाड़ी उत्पादों का आइडिया-

पहाड़ की बेटी प्रीति बताती हैं कि वह शुरू से ही बिजनेस माइंडेड (Business Minded) रही है। पढ़ाई करने के बाद सरकारी नौकरी मिली नहीं। वैकेंसी ही नहीं आई तो करते भी क्या। पहाड़ के लिए कुछ अलग करने की सोच थी तो सोचा कि क्यों ना पांरपरिक पहाड़ी उत्पादों को परोसकर इन्हें नई पहचान दिलाई जाए। लोकल उत्पादों को भी बढ़ावा मिलेगा और पहाड़ में खेती छोड़ रहे लोगों का फिर से हौसला बढ़ेगा। लिहाजा अगस्त 2021 में प्यारी पहाड़न करके रेस्टॉरेंट की शुरूआत की और आज लोगों का हर जगह से खूब प्यार मिल रहा है। हालांकि, रेस्टॉरेंट में 20 फीसदी चाइनीज फूड भी परोसा जाता है।

गढ़ भोज को किया फेल-

उत्तराखंड में ऐसी कई स्वयंसेवी संस्थाएं हैं, जिन्होंने गढ़ भोज के नाम पर खूब वाहवाही बटोरी। प्रदेश की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में पहाड़ी उत्पादों को बढ़ावा देने के मकसद से अस्पतालों व सरकारी विभागों के कार्यक्रम में पहाड़ी व्यंजन परोसे जाने का प्रचलन शुरू हुआ, लेकिन सरकार की यह योजना अब बंद हो गई। संस्थाओं की गढ़ भोज परोसे जाने की पहल भी उत्तराखंड की बेटी प्रीति मैंदोलिया की सोच के आगे फेल साबित हुई है।

सरकारी अटेंशन मिले तो बदलेगी तस्वीर-

पहाड़ी व्यंजन और उत्पादों को बढ़ावा देने की बात तो उत्तराखंड सरकारें (Uttarakhand Government) अक्सर करती आई हैं, लेकिन धरातल पर अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिले। ऐसा कोई सटीक प्लेटफॉर्म सरकार क्रिएट (Create) नहीं कर पाई, जिससे पहाड़ी उत्पादों को उनका सही और अच्छा मुनाफा मिल पाता। हालांकि, सरकारी स्तर पर कोशिशें अभी भी जारी हैं। प्यारी पहाड़न की संचालक प्रीति कहती हैं कि सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए। हम जैसे उद्यमियों की मदद के लिए सरकार को आगे आना चाहिए।
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वैज्ञानिक रिसर्च क्या कहती है-

रिसर्च (Scientific Research) बताती है कि हिमालयी राज्य के परंपरागत मोटे अनाजों की पौष्टिकता व गुणवत्ता उच्चस्तर की है। दक्षिण के बाद उत्तर भारत में स्थानीय अनाज, उनसे बनी डिश व अन्य पकवानों पर किए गए अनूठे शोध ने बीते वर्षों में मोटे अनाजों की महत्ता को बढ़ाने का काम किया है। वैज्ञानिक शोध के मुताबिक पकाने के बावजूद मोटे अनाजों में मौजूद विटामिंस व अन्य पोषकतत्व खत्म नहीं होते। कच्चे अनाज व उनसे बने पकवानों पर अनुसंधान व निष्कर्ष से उत्साहित विज्ञानियों ने इन्हें 'सुपरफूड' की संज्ञा दी है।

5 साल तक के बच्चों को मुफ्त मिलता है भोजन-

प्रीति ने बताया कि उनके रेस्टॉरेंट में पांच साल तक के बच्चों को फ्री ऑफ कॉस्ट (free of cost) भोजन परोसा जाता है। ताकि इसे खाकर वो भी जान सके कि पहाड़ के पारंपरिक पकवान स्वास्थ्य के लिहाज से कितने महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा रेस्टॉरेंट में पौड़ी, देहरादून, चंबा आदि जगहों से करीब 150 से अधिक महिलाएं रोजगार पा रही हैं।


उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री बोले-


सरकारी स्तर पर पहाड़ी उत्पादों और व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए सरकार तत्पर है। हाल ही में अधिकारियों को इसके लिए जरूरी कार्ययोजना बनाने के निर्देश जारी किए गए, जिस पर काम चल रहा।
गणेश जोशी, कैबिनेट मंत्री,
उत्तराखंड सरकार


पहाड़ी उत्पादों को बढ़ावा मिलना चाहिए, ये अच्छी पहल है। सरकारी स्तर पर जो भी कदम उठाने होंगे, पूरी प्राथमिकता के साथ विचार किया जाएगा।
रेखा आर्य,
खाद्य नागरिक आपूर्ति,
महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री
 उत्तराखंड

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