U Times, उत्तराखंड
उत्तराखंड में जिस तरह रोजगार संबंधी भर्तियों में तमाम गड़बड़ियां सामने आ रही हैं, उसने प्रदेश की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को भ्रष्ट नीति साबित कर दिया है। प्रदेश में मौजूदा भर्ती घोटालों से साफ जाहिर होता है कि भाजपा सरकार जीरो टॉलरेंस की कितनी ही दुहाई देती फिरे, लेकिन भ्रष्टाचार नहीं रूकेगा। मीडिया खबरों के मुताबिक विधानसभा में जिस तरह आवेदकों के महज एक प्रार्थना पत्र पर मंत्रियों ने अपने चहेतों की नौकरी लगाई, उससे भ्रष्टाचार की सारी हदें पार हो गई। नेताओं और अधिकारियों के लिए उत्तराखंड मजाक बन रह गया है।
Source: Social Media
कांग्रेस हो या भाजपा। दोनों ने सत्ता का दुरूपयोग करने का काम किया है, मौजूदा भर्ती धांधली इसकी गवाही दे रही है। जाहिर है जिन्होंने प्रदेश के योग्य युवाओं को दरकिनार कर अपने लोगों को नौकरी लगाने का काम किया, उन्होंने अन्य क्षेत्र में भी प्रदेश को लूटा है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। पहले तो अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की वीपीडीओ भर्ती में धांधली का ही अंदेशा था, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी और नए मामले उजागर हुए, उससे प्रदेशवासियों की आंखें फटी की फटी रह गई। उत्तराखंड के इतिहास में नौकरियों में धांधली का इतना बड़ा मामला पहली बार उजागर हुआ है। इसी बार ये साफ हो गया कि प्रदेश जब से अस्तित्व में आया, नौकिरयों में धांधली और चहेतों को फिट करने का खेल तब से चला आ रहा है। खुद कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में नियुक्तियों को लेकर मीडिया में दिए अपने बयानों में इन बातों का संकेत दिया। इतना ही नहीं अखबारों में पूर्व में उनके ये बयान तक छपे कि-उनके बेटे ने इंजीनियरिंग की, जल संस्थान में जरूरत थी, बेटे को वहां लगा दिया। उत्तराखंड में किसी नेता का ऐसा बयान वाकई हैरान देता है। ऐसा लगता है कि इस प्रदेश में मंत्री, विधायक ही सबकुछ हो गए और उनके चहेते।
एक और नेता, गोविंद सिंह कुंजवाल जो कि कांग्रेस शासनकाल में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहे। उन्होंने भी अपने बेटे-बहू को नौकरी लगाई। लगभग 160 लोगों को विधानसभा में तदर्थ नियुक्ति दी गई। इस पर सफाई देते हुए पूर्व विस अध्यक्ष कहते हैं कि सभी कुंजवाल उनके रिश्तेदार नहीं। क्या यही मानक होते हैं कि किसी को सरकारी नौकरी देने के? अगर कोई भी सरकार गंभीर हो तो ऐसे बयान देने से पहले ही इस तरह के नेताओं को जेल में डाल देना चाहिए। लेकिन अफसोस ऐसा होगा नहीं।
उत्तराखंड की विधानसभा में इस वक्त देश के सबसे बड़े राज्य यूपी विधानसभा से ज्यादा कार्मिक काम कर रहे हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जरूरत के नाम पर किस तरह मनमाने तरीके से नियुक्तियां दी गईं, वो भी बिना एग्जाम विज्ञप्ति जारी किए।
सत्ता में आने के लिए बीजेपी ने नारा दिया था, अबकी बार, फिर से बीजेपी सरकार। जो नारा दिया, वो मुकम्मल हुआ। लेकिन प्रदेश की जनता ने जिन उम्मीदों के साथ भाजपा सरकार चुनी, वो अब भर्ती घोटालों की परतें खुलने से धराशायी होकर रह गई हैं। उत्तराखंड का जो बेरोजगार सरकारी नौकरी के सपने देख रहा था, उन पर नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत ने ग्रहण लगाने का काम किया है।
इस प्रदेश के गांवों में घास काटकर और मजदूरी करके खून पसीने की कमाई से मां-बाप अपने बच्चों को इसलिए पढ़ाते हैं, ताकि उनके बच्चे भी काबिल होकर कहीं नौकरी लग जाए, लेकिन दुख की बात है कि आज उत्तराखंड में उन युवाओं को रोजगार के लिए खून के आंसू बहाने पड़ रहे हैं। उनका हक मारा जा रहा है। आज प्रदेश का युवा खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। जाहिर है, ऐसा आगे भी होता रहेगा।
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अगर सरकार वास्तव में कड़े कदम नहीं उठाती है, तो लोग अपनी आंखों के सामने प्रदेश को लुटता हुआ देखेंगे, कोई कुछ नहीं कर पाएगा। जब आज नहीं कर पा रहे, तो कल का क्या। सच तो ये है कि ऐसे भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ युवाओं को आगे आकर दो-दो हाथ करने की जरूरत है। इन घपलों की CBI जांच के लिए नया आंदोलन खड़ा करना होगा। तभी कुछ हो सकता है, अन्यथा कुछ भी नहीं होगा।
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