शिव सिंह थलवाल/प्रकाश रांगड़
उत्तरकाशी: यमुनोत्री हाईवे पर सिलक्यारा के पास निर्माणाधीन टनल के अंदर करीब 50 मीटर हिस्से के धंसने से टनल के भीतर काम कर रहे 40 मजदूरों की जान खतरे में है। सुरंग के अंदर मजदूर भले ही सुरक्षित बताए जा रहे हैं, लेकिन इस घटना से निर्माणदायी कंपनी की कार्यशैली पर कई तरह सवाल उठ खड़े हो रहे हैं।
अब तक टनल हादसे से यह साफ हो गया है कि कम्पनी ने मजदूरों की सुरक्षा में चूक की है। टनल में फंसे मजदूरों को बुधवार सुबह तक सकुशल बाहर निकालने का दावा किया जा रहा है, लेकिन क्या भविष्य में निर्माण एजेंसी और शासन प्रशासन इस तरह की घटनाओं से सबक लेगा ? सवाल ये भी खड़ा होता है।
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दरअसल, सिलक्यारा से डंडालगांव तक 4.5 किमी भूमिगत सुरंग का काम दो वर्ष पूर्व से चल रहा है। यह सुरंग चारधाम ऑल वेदर रोड परियोजना का हिस्सा है, जिसके निर्माण का जिम्मा एनएचआइडीसीएल कंपनी के पास है। हर मौसम के अनुकूल चारधाम सड़क परियोजना के तहत बन रही इस सुरंग के बनने से उत्तरकाशी से यमुनोत्री धाम तक का सफर 26 किलोमीटर कम हो जाएगा।
4 किलोमीटर सुरंग का निर्माण हो चुका है। पहले इस टनल का कार्य सितंबर 2023 में पूरा होना था, लेकिन प्रोजेक्ट में देरी हो गई है। अब इसे मार्च 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यह सुरंग करीब 853 करोड़ की लागत से बन रही है।
इस सुरंग के निर्माण का मुख्य मकसद जहां यमुनोत्री धाम की दूरी कम कर यात्रा को सुगम बनाना है, वहीं राड़ी टाप से गुजरने वाले असुरक्षित पहाड़ी ढलान और वाले बर्फीले मार्ग से निजात पाना भी है।
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कुछ समय पहले मिले थे संकेत, कर दिया नजर अंदाज
बताया जा रहा है कि टनल में हुआ हादसा कुछ समय पहले भूस्खलन के रूप में संकेत दे गया था, लेकिन निर्माणाधीन कंपनी ने इसे नजरअंदाज कर दिया।
सुरंग में काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि निर्माणाधीन सुरंग में छह माह पहले भी भूस्खलन के कारण करीब 15 मीटर हिस्सा ध्वस्त हुआ था। जिसका मलबा हटाने में कार्यदायी संस्था एनएचआइडीसीएल को करीब तीन माह का समय लगा। ऐसे में सुरंग के अंदर सुरक्षा के इंतजामात बढ़ा दिए जाने चाहिए थे।
अब जबकि सुरंग के अंदर इतना बड़ा भूधंसाव हो गया और 40 मजदूरों की जान खतरे में है तो कार्यदायी संस्था की लापरवाही पर सवाल उठ रहे हैं।
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सुरंग में काम करने वाले मजदूर अनिल, मदन सिंह, प्रेम यादव आदि ने बताया कि निर्माणाधीन सुरंग में छह माह पहले करीब 15 मीटर हिस्से में भूस्खलन हुआ था। हालांकि, उस दौरान कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन मलबा को हटाने में तीन माह का समय लग गया। अब एक बार फिर बड़ा भूस्खलन होने से यहां काम करने वाले मजदूर सहमे हुए हैं।
टिहरी बांध में वर्ष 2004 में 29 मजदूरों की दबकर हुई थी मौत
रविवार को टनल का करीब 50 से 70 मीटर हिस्सा धंसने से सुरंग के भीतर 40 मजदूरों की सांसें अटकी हैं। पहाड़ों में सुरंग निर्माण होने से पहले भी भूस्खलन की घटनाएं होती रही है। टिहरी बांध निर्माण के समय सुरंगों क निर्माण के समय कई हादसे हुए है। जिसमें दर्जनों मजदूरों को अपनी जानें तक गंवानी पड़ी। वर्ष 2004 में टिहरी बांध की एक सुरंग क धंसने से 29 मजदूरों की दबकर मौत हो गई थी। इसका मुख्य कारण भी सुरक्षा में भारी चूक होना रहा।
सुंरग निर्माण में हो रहे हादसे को रोकने के लिए अब भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हुए,जिसका खामियाजा सुरंगों में काम करने वाले मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है। सिलक्यारा टनल में हुआ हादसा भी सुरक्षा व्यवस्था में चूक का ही प्रतिफल माना जा रहा है।
पहले मजदूरों को सकुशल बाहर निकालना प्राथमिकता: सीएम
सोमवार को सिलक्यारा में राहत एवं बचाव कार्यों का जायजा लेने पहुंचे सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि फिलहाल सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता मजदूरों को सकुशल बाहर निकालना है। उसके बाद लापरवाही भी जांच बिठाई जायेगी। इसी तरह डीएम अभिषेक रूहेला और एसपी अर्पण यदुवंशी का कहना है कि फिलहाल पूरा लक्ष्य किसी तरह से मजदूरों को सकुशलन बाहर निकालने पर है।
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