पहाड़ी संस्कृति के द्योतक हैं कुठार और पंचपुरे भवन
शिव सिंह थलवाल, उत्तरकाशी
उत्तरकाशी जिले के कई गांवों में आज भी पौराणिक कुठार परंपरा जीवित है। अन्न भंडारण के लिए गोदाम के तौर पर कुठार का इस्तेमाल होता है। यमुनाघाटी के नगाणगांव में आज भी कुठार और पंचपुरे भवन देखने को मिलेंगे, जो मौजूदा समय में पहाड़ी इलाकों से लगभग पूरी तरह से विलुप्ति की कगार पर हैं। हालांकि उत्तरकाशी जिले की गंगाघाटी में उपला टकनौर के मुखबा, धराली, पाटा संग्राली और यमुनाघाटी के पुरोला, मोरी, बड़कोट के कई गांव में निर्मित कुठार और पंचपुरे भवन मौजूद हैं, जो अब बदलते वक्त के साथ दुर्लभ होकर रह गए हैं।
दरअसल, लकड़ी से निर्मित कुठार और पंचपुरे भवन पहाड़ की मजबूत संस्कृति की एक अनूठी मिसाल है। बड़कोट के नगाणगांव में इस संस्कृति की झलक दिखती है। जहां लोग सदियों अन्न भंडारण के लिए गोदाम के रूप भी प्रयोग करते आए हैं। कुठार में लोग सदियों से धान, गेंहू, कोदा, झंगोरा, मंडुवा, चैलाई, दालें, घी ,तेल, चीनी व रोजमर्रा के जरूरत की हर वस्तु रखते आए हैं। सुरक्षा की दृष्टि से इनमें सोने चांदी के अमूल्य बेशकीमती गहनों को लोग कुठार में रखते आए हैं। जिले के ज्यादात्तर गांवों में हालांकि आज भी बहुसंख्यक में कुठार मौजूद हैं,लेकिन बदलते वक्त के साथ अन्न भंडारण में इनका अब कम ही उपयोग हो रहा है। जिससे पौराणिक संस्कृति के संवाहक रहे कुठार विलुप्ति की कगार पर हैं। कुठारों के निर्माण में पूरी तरह से सौ फीसदी देवदार की लकड़ियों का ही इस्तेमाल होता है। जिससे कुठार में भंडारण किये अनाज कभी भी खराब नहीं होता है। ये कुठार कोल्डस्टोरेज का भी काम करते हैं।
गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट बताते हैं कि नगाणगांव में आज भी एक से बढ़कर एक कुठार सही सलामत हैं। दुनियाभर के उम्दा इंजीनियरिंग कॉलेजों से पढ़ाई कर निकले बड़े से बड़े इंजीनियर (आर्किटेक्ट) पहाड़ों में बने इस तरह के कुठार व पंचपुरे भवनों के निर्माण की कल्पना नहीं कर सकते, जो आज से सदियों पूर्व बुजुर्गों, कारीगरों, मिस्त्रियों ने बिना शिक्षा दीक्षा व बिना स्कूली ज्ञान के निर्मित किए हैं।
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