प्रकाश रांगड़, उत्तराखंड
उत्तराखंड की धरती भूकंप के झटकों से लगातार डोल रही है। वो भी ऐसे समय में जब भूगर्भ शास्त्रियों ने उत्तराखंड में पहले ही बड़ा भूकंप आने का संकेत दिया है।
बीती रात को उत्तरकाशी में लगातार आए तीन से चार भूकंप के हल्के झटकों ने स्थानीय जनमानस को दहशत में डाल दिया है। भटवाड़ी तहसील के सिरोर गांव में भूकंप का केंद्र रहा। ये यहां के लोग कैसे भूल सकते हैं कि आज से करीब 32 साल पहले आए 1991 के विनाशकारी भूकंप का केंद्र भी इसी क्षेत्र में जामक गांव था।
लिहाजा, मौजूदा वक्त में भूकंप का ये डर स्थानीय जनमानस के दिलों में और भी गहरा हो चला है।
U Times, file photo
इतिहास गवाह है कि विनाशकारी भूकंप की आहट अक्सर रात में ही सुनी गई है, जिससे बड़ा जानमाल का नुकसान हुआ। उत्तराखंड के इतिहास में सीमांत जनपद उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ में आए भूकंप विनाशकारी साबित हुए।
19 अक्टूबर 1991 में उत्तरकाशी में रात करीब तीन बजे आए 6.8 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप में 750 से अधिक लोगों की जानें गईं। पांच हजार से अधिक लोग घायल हुए। इस भूकंप से उत्तरकाशी और चमोली में करीब 18 हजार घर तबाह हुए, जिससे एक लाख से अधिक लोग बेघर हुए।
इसी तरह 29 मार्च 1999 को आधी रात 12.35 आए 6.6 तीव्रता वाले भूकंप के जलजले में 103 लोगों को जान गंवानी पड़ी और सैकड़ों घर तबाह हो गए।
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5 जनवरी 1997 को सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला में आया 5.9 तीव्रता का भूकंप भी जानलेवा साबित हुआ था। शिवालिक रेंज में काली नदी के किनारे नेपाल सीमा से लगे धारचूला नगर में भूकंप के कारण दर्जनों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और सैकड़ों भवन जमींदोज हो गए थे। ऐसे में जब कभी भूकंप दस्तक देता है, इन जिलों में स्थानीय जनमानस सहम उठता है। ये जिले भूकंप के लिहाज से वैसे ही संवेदनशील जोन में आते हैं। जिनको भूकंप की दृष्टि से जोन 4 व 5 में गिना जाता है।
उद्देश्य डराना नहीं, आगाह करना है
यहां उद्देश्य आम जनमानस को डराना नहीं है, बल्कि आगाह करना है। उत्तरकाशी में भूकंप भले ही आते हों, लेकिन नीति नियंताओं और लोगों को परवाह इसकी फिर भी नहीं है। बीते कुछ सालों में उत्तरकाशी में ऊंची ऊंची इमारतें खड़ी हो गईं। यहां अनियोजित तरीके से हर साल विकास का क्रम आगे बढ़ रहा है। प्रदेश के चमोली, पिथौरागढ़ आदि जनपदों में भी यही स्थिति है। विकास के नाम पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण ने भी पहाड़ों की संवेदनशीलता पर चोट की है, जिससे भूकंप जैसी आपदा में पहाड़ वक्त के साथ और भी खतरनाक स्थिति में पहुंच गए हैं।
वक्त रहते पहाड़ों पर सुनियोजित विकास की सोच को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
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