भगत सिंह राणा, मोरी
तहसील के दूरस्थ गांव सालरा में अगर घर-घर लगे नलों में पानी आ रहा होता तो अग्निकांड इतना भीषण रूप नहीं लेता। कई घर जलने से बच सकते थे।
गांव में हर घर जल योजना के तहत नल तो लग गए थे, लेकिन उनमें दो साल बाद भी पानी नहीं आया। तेज धूप में जब आग भड़की तो इसे बुझाने के लिए गांव में पानी नहीं था।
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लोगों को एक किलोमीटर दूर गदेरे और आधा किलोमीटर दूर कुएं की तरफ भागना पड़ा। जिसके हाथ जो भी बर्तन लगा, उसे उठाकर पानी लेने दौड़ पड़ा। क्या बच्चे, क्या बड़े सभी गांव को जलने से बचाने में जुट गए। पानी इतना दूर था कि जब तक कई चक्कर लगाने के बाद भी आग बुझती, तब तक उनकी आंखों के सामने 10 मकान जलकर राख हो गए। इस घटना में गांव के 22 परिवार बेघर हो गए।
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जब आग लगी तब ज्यादातर लोग घरों में नहीं थे और बगीचों में काम कर रहे थे। जो घरों में थे, वह जल्दी बाहर निकल गए। इसलिए उनकी जान बच गई। पशुओं को भी बाहर छाया में बांधा हुआ था। करतार सिंह ने बताया कि सोमवार सुबह लगभग साढ़े 10 बजे आग लगते ही ग्रामीण इसे बुझाने के लिए दौड़े। तेज धूप के बीच एक-दूसरे से सटे लकड़ी के मकान तेजी से जलने लगे। ग्रामीणों ने बर्तन उठाए और पानी लाने को गदेरे की ओर दौड़ पड़े।
गदेरे और कुएं से पानी लाकर आग बुझाने का प्रयास किया गया। दूर से पानी लाने के कारण आग को फैलने का समय मिल गया। आग इतनी भयंकर थी कि उसे बुझाने के चक्कर में कुछ लोग झुलस भी गए।
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गुस्से में दिखे ग्रामीण, बोले, ठेकेदार को पैसे मिल गए, हमें पानी नहीं मिला
पानी की योजना को लेकर सरकारी लापरवाही पर ग्रामीणों में गुस्सा दिखा। संतोष रावत ने गुस्सा जताते हुए कहा कि गांव में पानी नहीं है। घर में सरकार ने नल लगा रखे हैं, उनमें जल नहीं आ रहा। ठेकेदार ने घरों में नल लगाकर फोटो ले ली, लेकिन इन नलों में कभी पानी नहीं आया।
आज गांव में ऐसा हादसा हुआ तो पानी था ही नहीं। ठेकेदार को तो पैसे मिल गए होंगे, लेकिन हमें पानी नहीं मिला। इस उम्मीद में कि पानी आएगा, हमने शिकायत नहीं की। आज ये जो आग लगी, अगर पानी होता तो कई घर बच जाते।
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