Ad

Ad
Powered by U Times

तैयारी: गंगोत्री हाईवे के चौड़ीकरण को कोपांग चौकी पर आलौकिक वृक्ष होगा कुर्बान !

 लोकेन्द्र सिंह बिष्ट, उत्तरकाशी

ऑलवेदर प्रोजेक्ट के तहत गंगोत्री हाईवे के चौड़ीकरण के लिए गंगोत्री घाटी में हजारों पेड़ों की कुर्बानी दी जाएगी। बीआरओ और वन विभाग धरातल पर इसकी कवायद में जुटा है। घाटी में पेड़ों का छपान कर बलि देने का नंबर भी पड़ चुका है। इन सबके बीच यहां देवदार के आलौकिक वृक्ष को भी कुर्बान करने की तैयारी है। 

 Photo: U Times

आज आपको गंगोत्री घाटी के इसी अदभुत आलौकिक दिव्य वृक्ष देवदार के बारे में बताते हैं। जिसकी बलि लेने के लिए वन विभाग आतुर है। बलि लेने के लिए इस देवदार के वृक्ष के ऊपर (जिउँदाल) भी डाले जा चुके हैं।

यानी इसका छपान कर घन लगाकर इसकी बलि देने का नंबर 530 भी पड़ चुका है।

देवदार को देवों का वृक्ष भी कहा और माना जाता है। गंगोत्री घाटी में सघन देवदार के जंगल बहुतायत में हैं। ऊंचाई में आप पाएंगे कि यहां देवदार वृक्षों की ग्रोथ बहुत ही स्लो होती है। पेड़ ऊंचाई में कम हो सकते हैं, लेकिन मोटाई में एक से बढ़कर एक पेड़ मौजूद हैं।

   Photo: U Times

दरअसल, उत्तरकाशी से भैरों घाटी तक गंगोत्री मार्ग का विस्तारीकरण होना है। इसी के चलते गंगोत्री घाटी में हजारों देवदार के वृक्षों का पातन होना है। गंगोत्री घाटी के कोपांग में ITBP चौकी के समीप ये एक ऐसा अदभुत आलौकिक वृक्ष है, जो एक में ही 20 विशाल देवदार के वृक्ष समेटे हुए है। जमीन से एक वृक्ष और ऊपर इसकी 20 शाखायें हैं, जो अपने आप में सम्पूर्ण हैं और परिपक्व विशाल वृक्ष की भांति हैं। किसी वृक्ष की ऐसी शाखाएं शायद ही दुनिया में कहीं मौजूद होंगी।

इस जगह पर इस देवदार के अदभुत आलौकिक वृक्ष को बचाकर 50 मीटर चौड़ी सड़क बनाई जा सकती है, लेकिन ऐसा लगता है कि वन विभाग ने दुनिया के इस अनोखे वृक्ष को साफ करने का मन बना रखा है। जंगलों के कटान की पीड़ा को समझते हुए उत्तराखंड के मशहूर गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने आज से कई वर्षों पहले पेड़ों को काटने से बचाने के लिए अपने गीत के माध्यम से संदेश भी दिया था। लेकिन इस गीत को वन विभाग ने शायद ही कभी सुना होगा। सुना होता और अमल किया जाता तो वनों को यूं तहस नहस करने की योजना न बनती। उत्तरकाशी के डीएम अभिषेक रुहेला को जरुर बेशकीमती पेड़ों की पीड़ा समझकर इसको बचाने पर विचार करना चाहिए। हालांकि डीएम उत्तरकाशी ने भी इसको सकारात्मक ढंग से लिया और इस अदभुत आलौकिक पेड़ को बचाने का भरोसा दिया है। देखना होगा कि प्रशासन जंगलों की पीड़ा को कितना समझ पाता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ