शिव सिंह थलवाल, उत्तरकाशी
पर्यावरणीय कारणों से अरबों रुपये खर्च करने के बाद वर्ष 2010 से बंद पड़ी एनटीपीसी की लोहारीनाग-पाला जल विद्युत परियोजना का मसला लोकसभा चुनाव में भी हाशिए पर है।
सरकार ने परियोजना निर्माण पर हुए खर्च के एवज में एनटीपीसी को 536.30 करोड़ रुपये हर्जाना तो दिया, लेकिन परियोजना को फिर से चालू करने के तमाम दावे और वादे अब तक झूठे ही साबित हुए। अब जबकि लोक सभा चुनाव हो रहे हैं तो ऐसे में इस बड़ी जल विद्युत परियोजना को चालू करवाने की बात उठनी भी लाजिमी है।
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उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 में गंगा भागीरथी पर 2775 करोड़ रुपये लागत से एनटीपीसी की 600 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना का कार्य शुरू हुआ था। वर्ष 2010 में गंगा भागीरथी को राष्ट्रीय नदी घोषित कर केंद्र सरकार ने परियोजना पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही 480 मेगावाट की पाला मनेरी जल विद्युत परियोजना पर भी पर्यावरण का चाबुक चला और यह निर्माणाधीन परियोजना भी स्थगित की गई।
600 मेगावाट वाली लोहारीनाग परियोजना पर तब तक एनटीपीसी यहां करीब 40 फीसदी कार्य पूरा कर विभिन्न निर्माण कार्यों पर करीब आठ सौ करोड़ खर्च कर चुकी थी।
परियोजना बंदी के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने एनटीपीसी के 536.30 करोड़ के क्लेम को सही मानते हुए उन्हें हर्जाना दे दिया, लेकिन हीना से लोहारीनाग के बीच परियोजना के विभिन्न साइटों पर जमा करोड़ों की परिसंपत्तियों को लावारिस ही छोड़ दिया। हालांकि इस बीच चोर अब तक यहां से करोड़ों रुपये की मशीनों एवं अन्य सामानों पर हाथ साफ कर चुके हैं। दिसंबर 2017 में एनटीपीसी के अधिकारियों ने पुलिस को यहां चोरी की तहरीर भी दी थी।
इन सबके बीच लोहारीनाग पाला परियोजना को फिर से शुरू कराने के दावे और वादे भी किए गए, लेकिन हर बार चुनावी शोर थमते ही यह मसला ठंडे बस्ते में चला गया। हालांकि जब परियोजना बंद हुई, उस वक्त इसे चालू कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकार पर आंदोलनों के जरिए दबाव भी बना, लेकिन इसी बीच 2012 में यूपीए सरकार ने क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन घोषित कर परियोजना खोलने के मार्ग को और पेचीदा बना दिया। उस वक्त कांग्रेस सरकार की ओर से लागू किए गए ईको सेंसेटिव जोन के नियमों को भी शिथिल करने की मांग उठी।
स्थानीय लोगों को कहना है कि भारत-चीन सीमा से सटे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उत्तरकाशी क्षेत्र में हजारों लोगों को रोजगार देने की क्षमता रखने वाली जल विद्युत परियोजनाओं पर प्रतिबंध से लोगों के सामने रोजगार की समस्या पैदा हो गई है। इसके कारण पलायन भी एक चुनौती बनती जा रही है।
अब जबकि लोकसभा चुनाव हो रहे हैं तो ऐसे में एक बार फिर से राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों से इस बहुप्रतीक्षित जल विद्युत परियोजना को शुरू कराने के मुद्दे पर भी बातचीत की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन मौजूदा चुनाव प्रचार के बीच इसको लेकर किसी भी दल के प्रत्याशी अथवा पार्टी नेताओं ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और न ही कोई बात इस पर चुनावी जनसभाओं में हुई है।
ये बात अलग है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने उत्तरकाशी के रामलीला मैदान में चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए इस परियोजना को फिर से शुरू कराने का वादा स्थानीय जनमानस से किया था।
उन्होंने वादा किया था कि बीजेपी की डबल इंजन की सरकार बनते ही परियोजना को चालू कराने का प्रयास करेंगे। इस बीच 2019 का लोकसभा चुनाव और 2022 का विधान सभा चुनाव का दौर भी गुजरा, लेकिन परियोजना खुलवाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
कहा जा सकता है कि लोहारीनाग पाला परियोजना को शुरू कराने के दावे और वादे अब तक झूठ के पुलिंदे ही साबित हुए। इस मसले को सरकारों और नेताओं ने गंभीरता से लेने की बजाय राजनीतिक मसले के रूप में यूज किया और चलता बन गए।
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