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उत्तराखंड की लोकभाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग ने पकड़ा जोर

 U Times, नई दिल्ली

गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग जोर पड़कड़ने लगी है। उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के प्रतिनिधि मंडल ने पूर्व सीएम व गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की और उनको मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपा।

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 प्रतिनिधि मण्डल में शामिल अनिल पन्त, दिनेश ध्यानी, दर्शन सिंह रावत, प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, भगवती प्रसाद जुयाल, उमेश चंद्र बंदूनी आदि साहित्यकारों ने गुरूवार को सांसद रावत से उत्तराखंड की लोकभाषा के बारे में विस्तृत चर्चा की। इस दौरान सांसद ने कहा कि उनके संज्ञान में भी यह विषय है कि गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच को पूरा सहयोग देने और भाषा सम्बन्धी मांग को अंजाम तक पहुंचाने की बात कही। कहा कि वे स्वयं भी इस दिशा में उचित मंच से इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का प्रयास कर रहे हैं। रावत ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की, कि आज हमारी नई पीढ़ी अपनी भाषा-साहित्य से दूर होती जा रही है। हमें अपनी भाषा-सरोकारों को बचाये रखना होगा और यह सब तभी संभव है जब नई और पुरानी पीढ़ी मिलकर इस दिशा में पहल करेंगे।

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  Photo: U Times

 मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी ने बताया कि आने वाले दिनों में उत्तराखण्ड के सभी सांसदों को अपना मांगपत्र सौंपेंगे। जिसमें प्रमुखता से गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग रखी जायेगी। इसको लेकर मंच ने निर्णायक पहल शुरू कर दी है, जिसका आगाज बीते 2 अप्रैल, 2022 को किया गया, जहां दिल्ली गढ़वाल भवन में गढ़वाली-कुमाऊंनी- जौनसारी भाषाओं पर पहली बार अखिल भारतीय सम्मलेन और भाषा मानकीकरण पर दो दिवसीय आयोजन हुआ।

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